जब भी आप हिमालय की बर्फाच्छादित चोटियों के बारे सोचते होंगे आपका ख्याल अकस्मात् ही कश्मीर या शिमला की तरफ जाता होगा। लेकिन सिर्फ कश्मीर या शिमला ही क्यों? भारत के पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम के बारे कभी सुना है आपने? जी हाँ पहाड़ो की गोद में बसा हुआ एक छोटा सा राज्य जहाँ की बर्फीली वादियाँ मुझे बरबस यह लेख लिखने को मजबूर कर रही हैं। अगर आप भी मेरी तरह इन फिजाओ में रमना चाहते हैं तो आईये गंगटोक। मार्च 2013 में हम दार्जिलिंग से चार घंटे की यात्रा कर
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गंगटोक का मुख्य सड़क और बाज़ार जहाँ की गयी है फूलों से सजावट |
गंगटोक पहुचे और सिक्किम के
पर्वतों पे कुछ दिन बिताये। गंगटोक की ख़ूबसूरती, जैसा की आप यहाँ देख रहे हैं, किसी यूरोपीय शहर से कम नही है। गंगटोक शहर से 125 किमी की दुरी पर है एक ऐसी बर्फीली घाटी जहाँ का नजारा आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। वहां तक जाने के लिए हमलोगो ने एक दिन पहले ही टूर वालो से संपर्क कर लिया था। अगले दिन की दोपहर बारह बजे के आस पास उस घाटी का सफ़र शुरू हुआ। गंगटोक से उत्तर दिशा की और हम बढ़ चले थे पहाड़ो की डगर पे। रास्ता बड़ा ही कठिन था। कही कही इतना संकरा की एक इंच भी अगर गलत चले तो हजार फीट गहरी खाई में समा जाना तय है। यूँ तो गंगटोक शहर बड़ा सुन्दर है लेकिन बाकि सड़के कही कही ख़राब भी हैं। धीरे धीरे शाम होने लगी और हम रात के आठ बजे लाचुंग पहुचने वाले थे। अचानक तेज बारिश और बादलों की गड़गड़ाहट से ठण्ड काफी बढ़ गयी। इस चित्र में आप उसी शाम की एक झलक देख रहे हैं। घोर अँधेरे से गुजरते हुए हमें लाचुंग के एक छोटे से कस्बे में रात बिताना था ताकि अगले दिन सुबह सुबह हम आगे 20 किमी की दूरी पर स्थित रमणीय यमथांग घाटी पर जा सकें।
लाचुंग की रात बड़ी सर्द थी। लकड़ी के दीवारो से बने कमरे में कुछ राहत थी पर बाहर की हवाएँ तो खून को ज़माने पे ही तुली हुई थीं। एक बन्दे ने कहा की अगर आप जनवरी में आते तो आपको पानी के टंकी में भी बर्फ मिल जाता। सब लोगों ने मिल कर एक साथ डिनर किया और जल्दी जल्दी सब अपने अपने कमरे के रजाई में दुबक गए।
अब अगली सुबह हमें घाटी के लिए जाना था। सब लोग बर्फ देखने के लिए बेक़रार थे। मैं तो चहककर चार बजे भोर से खिड़कियों से बार बार झाँक रहा था। हलकी हलकी बर्फ की चोटियों की सफेदी झलक रही थी। जैसे ही सूरज की किरणे बर्फ पे पड़ने लगी ऐसा लगा जैसे चांदी सोने में तब्दील हो रहा है। अब हमारा कारवां आगे बढ़ चला। बर्फ से हमारी नजदीकियां बढ़ती चली गयीं। जैसे ही रस्ते पर बर्फ का पहला टुकड़ा दिखा सबने चिल्लाया ऊऊऊऊ हूऊऊऊऊऊ! ऐसा लगा की किसी ने बोतल से वहां टोमेटो सॉस की तरह इसे टपका दिया हो। अब कुछ देर बार हम उस यामथांग घाटी पे कदम रख चुके थे। धीरे धीरे आगे और भी बर्फ मिलती गई। रस्ते के दोनों किनारे बर्फ से भरे थे। घाटी पहुचने पर देखा की वहाँ कुछ दुकाने हैं जो भाड़े में जूते और कोट देते हैं। चारो तरफ बर्फ ही बर्फ की चोटियां थीं। पेड़ो के पत्ते तक सफ़ेद चादर से ढके हुए थे। हम तो फोटोग्राफी कर कर के नहीं थक रहे थे। इस घाटी पे आने पर कुछ लोगो ने कहा की आगे 20 किमी पर एक और जगह है जीरो पॉइंट जहाँ लोग और भी ज्यादा मात्रा में बर्फ देखने जाते हैं। हम भी जोश में वहां भी निकल पड़े। सचमुच ये और भी ज्यादा रूमानी जगह था। बर्फ की सघनता और भी बढ़ती चली गयी। रास्ते के दोनों और बर्फ के बड़े बड़े खंड सफ़ेद खरगोश जैसे लग रहे थे। गाड़ी चलना भी यहाँ बड़ा कुशलता वाला काम था। यहाँ तो नब्बे फीसदी जगह बर्फ से ही ढकी पड़ी थी। सचमुच यही सिक्किम का स्वर्ग था! मैं तो बर्फ को अपने हाथो से छु-छु कर देख रहा था। यह नजारा जिंदगी भर मानस पटल से नही मिट पायेगा। वापसी के क्रम में भी हमें बारिश और रोड जाम सामना करना पड़ा। लगभग आठ घंटे की थकान लिए हम देर शाम वापस गंगटोक आ गए।
अब अगली सुबह हमें घाटी के लिए जाना था। सब लोग बर्फ देखने के लिए बेक़रार थे। मैं तो चहककर चार बजे भोर से खिड़कियों से बार बार झाँक रहा था। हलकी हलकी बर्फ की चोटियों की सफेदी झलक रही थी। जैसे ही सूरज की किरणे बर्फ पे पड़ने लगी ऐसा लगा जैसे चांदी सोने में तब्दील हो रहा है। अब हमारा कारवां आगे बढ़ चला। बर्फ से हमारी नजदीकियां बढ़ती चली गयीं। जैसे ही रस्ते पर बर्फ का पहला टुकड़ा दिखा सबने चिल्लाया ऊऊऊऊ हूऊऊऊऊऊ! ऐसा लगा की किसी ने बोतल से वहां टोमेटो सॉस की तरह इसे टपका दिया हो। अब कुछ देर बार हम उस यामथांग घाटी पे कदम रख चुके थे। धीरे धीरे आगे और भी बर्फ मिलती गई। रस्ते के दोनों किनारे बर्फ से भरे थे। घाटी पहुचने पर देखा की वहाँ कुछ दुकाने हैं जो भाड़े में जूते और कोट देते हैं। चारो तरफ बर्फ ही बर्फ की चोटियां थीं। पेड़ो के पत्ते तक सफ़ेद चादर से ढके हुए थे। हम तो फोटोग्राफी कर कर के नहीं थक रहे थे। इस घाटी पे आने पर कुछ लोगो ने कहा की आगे 20 किमी पर एक और जगह है जीरो पॉइंट जहाँ लोग और भी ज्यादा मात्रा में बर्फ देखने जाते हैं। हम भी जोश में वहां भी निकल पड़े। सचमुच ये और भी ज्यादा रूमानी जगह था। बर्फ की सघनता और भी बढ़ती चली गयी। रास्ते के दोनों और बर्फ के बड़े बड़े खंड सफ़ेद खरगोश जैसे लग रहे थे। गाड़ी चलना भी यहाँ बड़ा कुशलता वाला काम था। यहाँ तो नब्बे फीसदी जगह बर्फ से ही ढकी पड़ी थी। सचमुच यही सिक्किम का स्वर्ग था! मैं तो बर्फ को अपने हाथो से छु-छु कर देख रहा था। यह नजारा जिंदगी भर मानस पटल से नही मिट पायेगा। वापसी के क्रम में भी हमें बारिश और रोड जाम सामना करना पड़ा। लगभग आठ घंटे की थकान लिए हम देर शाम वापस गंगटोक आ गए।
हम लोग गंगटोक तो गये पर समय की कमी के वजह से यमथांग नही जा पाए...
ReplyDeleteकोई बात नहीं रितेश जी अगली बार जरूर मौका मिलेगा।
ReplyDeleteमैं 28 मई को जाने का सोच हूँ।
ReplyDeleteकुछ खास टिप्स की दरखास्त है
Yes I agree Yumthang Valley is the Heaven of Sikkim and that is true because of my personal experience. I visited this place once. I took a cab from 99CarRentals from Bagdogra airport to reach Gangtok and then to Yumthang Valley. It was a nice experience.
ReplyDeleteI really enjoy reading your posts where I can get such useful information. Thanks for sharing. It's invaluable. Book Delhi to Bagdogra Flights and get the best flight rates and deals on Domestic flights.
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ReplyDeletedog does.
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