चल छैयां छैयां छैयां..... देखा ही होगा आपने कभी न कभी इस गाने के वीडियो को। एक छुक छुक करती ट्रेन पर इसकी थिरकाने वाली धुन कुछ बरसों पहले सभी के जुबाँ पर सुनाई पड़ती थी। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ ऊटी के नीलगिरि माउंटेन रेलवे या यूँ कहे ऊटी के टॉय ट्रेन की, जो ऊटी से कन्नूर होते हुए मेट्टुपलायम तक सैकड़ों वलयों, पुलों और गुफाओं से गुजरती हुई पहुँचती है। कन्नूर जाने के क्रम में मैंने भी इसी ऐतिहासिक टॉय ट्रेन वाले मार्ग को ही चुना।
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उदगमंडलम रेलवे स्टेशन |
इस ऐतिहासिक ट्रेन की शुरुआत सन 1908 अंग्रेजों द्वारा की गई, इनमे से कुछ तो आज भी भाप इंजन से ही चल रहे हैं। टॉय ट्रेन का सफर करने के लिए या तो आप ऑनलाइन IRCTC से टिकट बुक कर सकते हैं या फिर काउंटर पर ही जनरल टिकट ले सकते हैं। ऑनलाइन बुक कर लेने पर सीट लेने में दिक्कत नहीं होगी।
सुबह सुबह नौ बजे का वक़्त था और उदगमंडलम स्टेशन पर सैलानियों की लाइन लगी पड़ी थी। कुछ ही देर में ट्रेन का आगमन हुआ और सभी चहककर नीलगिरि के इस अनूठे सौंदर्य का दीदार करने के लिए ट्रेन में दाखिल हुए। कहने को तो यह टॉय ट्रेन थी, पर अंदर काफी जगह थी। ज्यों ही ट्रेन की चार-पाँच बोगियों ने इस पर्वतीय संकीर्ण पटरियों पर छुक-छुक कर दौड़ना शुरू किया, सभी सहयात्रीगण खिड़की से अपने अपने कैमरों में तस्वीरें लेने की जुगत में पड़ गए। कही तीखा मोड़ मिलता तो कहीं गहरी खाई।
सिम्स पार्क में कुछ पल बगीचों में बिताने के बाद मैंने डॉलफिन नोज की ओर रुख किया। डॉलफिन नोज़ एक ऐसी जगह है जहाँ का सन्नाटा दिन में भी रात का एहसास करा देता है और ये जगह काफी शांतिदायक है। डॉलफिन के नाक की आकृति के कारण ही इसका ऐसा नाम पड़ा है। आगे आपको मिलेंगे लैम्ब्स रॉक और कैथरीन फाल्स। लैम्ब्स रॉक से कन्नूर का समूचा नजारा और कोयंबटूर के मैदानी हिस्से दिखाई पड़ते हैं।
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