कहा जाता है की भारत नदियों का देश है, जिनमें गंगा सर्वप्रमुख है। हिमालयी कंदराओं से उत्पन्न होती, हजारों मोड़ और वलय लेती तथा इसके किनारे बसे शहरों के लाखों-करोड़ों लोगों को जीविका देती इस गंगा का सागर से मिलन एक बहुत ही दिलचस्प तरीके से होता है दोस्तों। जी हाँ आज मैं आपको सैर कराने ले जा हूँ पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप की जहाँ पर गंगा और सागर का संगम देखना तो प्रकृति प्रेमियों को खूब भायेगा ही, साथ ही वहां तक पहुँचने के लिए जो मार्ग है वो भी कर्मठ घुमक्कड़ों को खूब रास आएगा। एक और बात याद दिल दूँ की गंगासागर 1971 के भारत-पाक युद्ध का गवाह भी रह चुका का है, जिसमे शहीद होने वालों में अल्बर्ट एक्का का नाम शुमार है।
तो पिछले हफ्ते मेरी यात्रा शुरू हुई जमशेदपुर से रेलमार्ग द्वारा कोलकाता और फिर कोलकाता के सियालदह से पुनः रेलमार्ग द्वारा काकद्विप नामक स्थान तक। काकद्विप में हुगली किनारे स्टीमर से नदी पार करने के लिए हरवुड पॉइंट नामक स्थान पर जैसे ही मैं पहुँचा, नदी की सागर जैसी विशालता से स्तब्ध रह गया। सूर्यास्त होने को था और इसका नजारा कुछ यूँ था। दौड़ते हुए मैं स्टीमर में चढ़ गया ताकि
तो पिछले हफ्ते मेरी यात्रा शुरू हुई जमशेदपुर से रेलमार्ग द्वारा कोलकाता और फिर कोलकाता के सियालदह से पुनः रेलमार्ग द्वारा काकद्विप नामक स्थान तक। काकद्विप में हुगली किनारे स्टीमर से नदी पार करने के लिए हरवुड पॉइंट नामक स्थान पर जैसे ही मैं पहुँचा, नदी की सागर जैसी विशालता से स्तब्ध रह गया। सूर्यास्त होने को था और इसका नजारा कुछ यूँ था। दौड़ते हुए मैं स्टीमर में चढ़ गया ताकि
कही अँधेरा न हो जाय और इस चार-पांच किलोमीटर चौड़ी नदी को पार करने का रोमांच न छूट जाय। नदी से सागर में बदलती हुगली यानि गंगा का स्वरुप यहाँ बिलकुल शांत परन्तु विकराल था। लगभग 45 मिनट तक जलयात्रा करने के पश्चात् हम नदी के पार सागर द्वीप के कचुबेरिया घाट पर पहुचे।
सोचा था की टापू में क्या मिलेगा? लेकिन था बिलकुल उल्टा। यहाँ भी एक घना शहर ही बसा हुआ था और पेड़ पौधों का रूप देखकर लग रहा था बंगाल न होकर दक्षिण भारत पहुच गए हों। यहां से गंगासागर तट यानि द्वीप के आखिरी छोर तक जाने के लिए बस से एक घंटे तक 30 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी। टापू के सबसे उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक पहुँचते पहुँचते काफी अँधेरा हो चुका था फिर भी शाम के साढ़े छह बजे होटल मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई। आस पास शुद्ध शाकाहारी भोजन की अच्छी व्यवस्था थी। मैंने देखा की शाम के समय बाजार में छिट-पुट यात्रियों का जमघट लगा पड़ा है, इनमे से एक दुकान की झलक मैं आपको दिखता हूँ।
अब अगली सुबह गंगासागर तट पर मैंने देखा की नवम्बर महीना होने के कारण कोई खास भीड़-भाड़ नही है, सिर्फ इक्के-दुक्के लोग ही सागर दर्शन हेतु आये थे, किन्तु मकर संक्रांति में यहाँ लाखों की भीड़ होती है। मैंने पाया की यहाँ तो नदी और सागर दोनों में फर्क कर पाना नामुमकिन था। सागर काफी छिछला था और काफी दूर तक घुटने भर पानी में लोग डुबकी लगा रहे थे। लहरें भी लगभग खामोश ही थीं। लेकिन एक ही बात जो मन में खटकी वो थी, थोड़ी-बहुत गन्दगी की मौजूदगी ।तट से कुछ ही दुरी पर कपिलमुनि आश्रम है, जो की तट से कुछ इस तरह से दिखाई पड़ता है। इस आश्रम के बारे विस्तार से जानने के लिए तो इतिहास की गहराईयों में उतरने की जरुरत पड़ेगी, लेकिन मैं तो इतना ही बता सकता हूँ की कपिल मुनि सांख्य दर्शन के अनीश्वरवादी प्रतिपादक थे और गंगासागर उनका तपस्या क्षेत्र था।
एक नजर इन तस्वीरों पर----
उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी!!!
Deleteim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
ReplyDeletedog does.
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