केरल के कोवलम तट के सौंदर्य से मुखातिब होने के बाद पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारा अगला पड़ाव था -त्रिभुजाकार भारत के दक्षिणतम छोर कन्याकुमारी पर जिसे पहले केप-कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता था। सबसे रोमांचक तथ्य यह है की यहाँ तीन समुद्रों- हिन्द, अरब और बंगाल की खाड़ी का अद्भुत संगम है। अभी तक मैंने जितने भी समुद्र तट देखे हैं, उनमे से यह सबसे अनोखा क्यों है?
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The Vivekananda Rock Behind "Our Lady of Ransom Church", Kanyakumari |
क्योंकि यहाँ आप समुद्र का लगभग
- 2004 में आये सुनामी के बाद पुनर्जीवित एक एकांत तट में कुछ पल (Chotavilai Beach, Tamilnadu)
- भारत का अंतिम छोर और वो टापूनुमा विवेकानंद रॉक (Kanyakumari, India)
- नीलगिरि माउंटेन रेलवे, ऊटी (Nilgiri Mountain Railway: Ooty to Coonoor)
- ये हंसी वादियाँ आ गए हम कहाँ- ऊटी (Romance of Ooty)
त्रिवेंद्रम से नागरकोइल होते हुए कन्याकुमारी पहुचने में काफी भाषाई दिक्कतों से जूझना पड़ा। बस वाले को हमारी हिंदी बिल्कुल ही समझ ही नही आ रही थी, जिसके कारण उसने हमें गंतव्य से काफी आगे उतार दिया था, फलस्वरूप वापस पीछे चलना पड़ा। रेस्त्रां में भी मुझे उनकी भाषा पल्ले न पड़ी लेकिन नागरकोइल में पहली बार केले के पत्ते में भोजन करना दक्षिण भारतीय जायके का एहसास दे गया। दिलचस्प बात यह है की भाषाई समस्या सिर्फ नागरकोइल तक ही सीमित रही, जबकि बगल के ही शहर कन्याकुमारी में हिंदी भाषियों की कोई कमी नहीं थी। विवेकानंद मेमोरियल रॉक के लिए टिकट कटाते ही अगल-बगल ढेर सारे मछुवारों की नावें दिखाई पड़ी।
कन्याकुमारी में टापूनुमा विवेकानंद रॉक के पर्यटन का मुख्य आकर्षण है और बगैर इसके दर्शन किये कन्याकुमारी जाना अधूरा ही है। तट से लगभग पांच सौ मीटर अंदर की दुरी स्टीमर से तय करनी पड़ती है, और स्टीमर का टिकट लेने के लिए भी काफी लम्बी-लम्बी लाइनों में लगना पड़ता है, वो भी शाम चार बजे तक ही टिकटघर खुला रहता है। इसीलिए हम भी जल्दीबाजी में थे और फटाफट टिकट लेकर अंदर प्रवेश कर गए।
ज्यों ही सौ-डेढ़-सौ पर्यटकों संग आधे किलोमीटर की जलयात्रा आरम्भ हुई, हल्की-फुल्की बारिश ने मौसम में ताज़गी भर दी, जैसे जैसे चट्टान सामने आता, मन में कौतुहल बढ़ती जाती। अचानक हमारे बगल से वापस आती एक स्टीमर आती दिखाई पड़ी।
चारों तरफ से जल से घिरे इसी चट्टान पर चट्टान पर कभी स्वामी विवेकानंद का पदार्पण हुआ था। लगभग आधे घंटे बाद हम चट्टान के काफी करीब आ गए और एक एक कर सभी यात्रीगण उतरने लगे। सीढियों पर कदम बढ़ाते हुए हम सब इस टी की ओर चल पड़े।
पर्यटकों की भारी भीड़-भाड़ के बीच इस चट्टान से समुद्र का नजारा सचमुच चौकाने वाला ही था। चारो ओर था सिर्फ पानी ही पानी और ठंडी-ठंडी हवाओं ने तो मिजाज ही खुश करके रख दिया।
इस चट्टान की चोटी पर स्थित मंदिर पर सीढियों के माध्यम से जाना पड़ा। वहां पर देखा की विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस से जुड़े अनेक स्मृतियाँ यहाँ मौजूद हैं। उनसे जुडी किताबें, मूर्तियाँ आदि उपलब्ध थे।
एक मामूली से चट्टान को काफी अच्छे तरीके से विकसित करके अव्वल दर्जे के पर्यटन केंद्र बना दिया गया है। सबसे पिछले हिस्से पर बैठने की व्यवस्था थी, और उसके आगे था सिर्फ और सिर्फ विशाल समुद्र।
विवेकानंद मेमोरियल के बगल में ही स्थित है तमिल कवि एवं दार्शनिक तिरुभल्लूवर की मूर्ति। विवेकानंद रॉक जाने वाली स्टीमर इसी के बगल से होकर ही गुजरती है, जो की यहाँ से कुछ इस तरह दिखाई दे रहा था।
समूचे चट्टान की पूरी परिक्रमा करने में हमें लगभग एक से डेढ़ घंटे का वक़्त लगा, साथ ही शायद यह दिन का आखिरी ग्रुप भी था, इसीलिए संचालकों ने सभी से शीघ्र ही वापसी का आग्रह किया।
हलकी-फुलकी बारिश भी हुई कुछ देर के लिए, किन्तु बड़ी बाधा साबित न हो पाई। फिर से फेरी में बैठकर तट की ओर वापस कदम रखने के बाद कुछ अन्य स्मारकों की तलाश शुरू हुई जिनमे गांधी मंडप बिलकुल तट पर ही है।
कुछ दुरी पर सागर अवलोकन हेतु एक व्यू पॉइंट भी बनाया गया है, किन्तु हम समीप नहीं जा पाए। बाजार इलाका होने के कारण काफी चहल-पहल थी और समुद्री सीपों और शंखों से पूरा बाजार पटा पड़ा था। संयोग्वश कुछ इ-रिक्शा वाले एक नयी जगह 'कोवलम' ले जाना छह रहे थे, पता चला की वे केरल वाले कोवलम नहीं, बल्कि कन्याकुमारी वाले कोवलम की बात कर रहे थे। बस फिर क्या था, जिज्ञासावश उन्ही के साथ चल पड़े।
यहाँ चट्टानों से टकराती सागर की लहरों के पास शाम का गुजारना बड़ा ही आनंददायक था, काफी लोग संगम के जल से अपने पांवों को धोकर खुद को तृप्त समझ रहे थे। यहाँ के बालू में आप पाएंगे काफी बड़े बड़े सिप के टुकड़े और समुद्री जीवो के कंकालो के टुकड़े। सूर्योदय और सूर्यास्त का एक साथ नजारा देखने के लिए ये जगह सर्वोत्तम है।
कन्याकुमारी के साथ ही हमारी दक्षिण भारतीय यात्रा समाप्ति की ओर थी, लेकिन अगली सुबह ट्रेनों का इंतज़ार करने के क्रम में ही हमने एक अछूते तट "छोटाविलाई" का भी दर्शन कर लिया था, जिसके बारे जानने के लिए इस यात्रा की अगली कड़ी पढना जारी रखें।
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विवेकानंद रॉक के बारे में जानकार अच्छा लगा, फोटो भी अच्छे लगे...
ReplyDeleteएक सलाह .....फोटो लिखावट के बीच में न डालकर एक साथ अंत या बीच में डाले तो बेहतर रहेगा.... फोटो के बीच में लेख को ढूढना पड़ता है ...
धन्यवाद
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धन्यवाद रितेशजी! सुझाव का ख्याल रहेगा।
DeleteBahut hi badhiya. Ye journey hamne kai salo pehle ki thi jo aaj jivant ho gai. Pics bhi lajwab hai
ReplyDeleteAsim Anant Samundar.
धन्यवाद अमित भाई
DeleteYour post is our way of acknowledged to knew South India specially kanyakumari....so very nice post
ReplyDeletebahut achcha lga pad ke bina waha gye itni jankari ho gyi
ReplyDeletethank u
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
ReplyDeletedog does.
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