कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक तथा कुछ अन्य समीपवर्ती समुद्र तटों व स्मारकों से दो चार होने के दौरान स्थानीय लोगों से बातचीत के जरिये ही एक ऐसे तट का नाम सुन रखा था जो मुख्य शहर से थोडा सा बाहर है, किन्तु बिलकुल शांत और अपने आप में इतना अनोखा की प्रचलित समुद्री किनारों की चमक भी फीकी पड़ जाय ! साथ ही चार किलोमीटर तक फैले कारण यह तमिलनाडु के सबसे लम्बे तटों में से भी एक है। अगले दिन की शाम हमें नागरकोइल होते हुए बैंगलोर की ओर प्रस्थान करना था, इसीलिए सुबह के बचे हुए खाली वक़्त को यूँ ही ट्रेन के इंतज़ार में बर्बाद होने नहीं दिया और निकल पड़े उस अनूठे तट की ओर!
पर ही है छोठाभिलाई या सोथाभिलाई तट जिसके लिए सिर्फ कुछ घंटों का ही समय चाहिए। चाहे तमिलनाडु हो या कोई और दक्षिण भारतीय राज्य, इनकी एक खासियत यह है की हर कोने कोने तक बस सेवा उपलब्ध रहती है। इसीलिए आसानी से बस द्वारा कन्याकुमारी से नागरकोइल, फिर नागरकोइल बस स्टैंड से छोटाभिलाई वाली बस पकड़ कर इस तट के बिलकुल करीबी गाँव तक आ गए, सिर्फ कुछ ही दूर पैदल चलना था। वैसे कन्याकुमारी के कोवलम तट से अगर सीधे निजी वाहन से चलें तो मात्र आठ ही किलोमीटर तय कर यहाँ तक पहुंचा जा सकता है।
एक शांत और एकांत से गांव के रास्ते के दोनों ओर नारियल से लदे हुए पड़ों को देखकर जी ललक उठा, किन्तु दुर्भाग्यवश वे बड़े ही दूर लगे हुए थे। सुव्यवस्थित गाँव का सन्नाटा, शहरी ताम-झाम से दूर, अपने बारे कुछ हकीकत बयां कर रहा था। एक्के-दुक्के ग्रामीणों से बात करने को जी हुआ, किन्तु फिर से तमिल भाषा की अज्ञानता ने परेशान किया, हिंदी से अनजान लोग, हलकी-फुलकी अंग्रेजी ही काम आई।
दरअसल 2004 के महासुनामी के दौरान यह इलाका काफी प्रभावित हुआ था, किन्तु धीरे-धीरे इसे फिर से बसा लिया गया है। यह महसूस कर पाना दिलचस्प था की जगह मैं खड़ा था, वो कभी समुद्र के महाकाल में भी समाया होगा और आज वो फिर से पुनर्जीवित अवस्था में मुझे यहाँ तक खींच लाया है।
खैर इन्ही सब बातों ने मन को भुलाये रखा और चलते चलते इस तट का खूबसूरत प्रवेश द्वार दिखाई पड़ा। द्वार पर समुद्री जीवों के ही रंग-बिरंगे सुन्दर नक़्शे बने हुए थे और साथ ही लहरों की आवाजें भी कानों में दस्तक देने लगी। सीढियों से उतर कर तट पर कदम रखते ही इसके अनोखेपन का सुखद एहसास हुआ।
बिलकुल साफ़-सुथरी और निर्जन सा तट! दूर दूर तक कोई भी नहीं! एकदम अपने स्वाभाविक प्राकृतिक अवस्था में! एक और विचित्र बात यह की चार किलोमीटर तक यह तट बिलकुल सीधी सपाट है ! नीले समंदर के ऊपर नीला सा आसमान- ऐसा मानो दोनों के बीच नीलेपन की प्रतिस्पर्धा लगी हो! एक और बात यह की छिछला तट होने के कारण यहाँ काफी दूर तक अन्दर चला जा सकता था, लेकिन निर्जनता की वजह से मैंने कोई भी जोखिम लेना ठीक न समझा।
रेत पर अनेक कीड़े मकोड़ों के टीले बने जिनके आपसी गुफ्तगूं तथा क्रियाकलापों को देखकर आनंद आ जाता। रंग-बिरंगे केकड़े बालू पर बनाये अपने सुरंगों में आवागमन कर रहे थे। लहरे आती और अपने साथ ढेर सारे जीवों-सीपों के सफ़ेद कंकाल छोड़ जाती। कभी-कभी तो पानी में अत्यधिक झाग में पैर डुबोने में मजा आ जाता।
अगर पिकनिक का मौसम होता तो यहाँ भीड़-भाड हो सकती थी, किन्तु उस समय जून का महिना था। शांत जगह पसंद करने वालों के लिए यह जगह बिलकुल सटीक है। इस तट के समीप ही एक और तट है जिसका नाम है संगुथराइ किन्तु वहां जाना नहीं हो पाया। तट से ऊपर आने पर एक चाय की दुकान मिली, लेकिन आस-पास और कोई घर नहीं था, सिर्फ एक वीरान सड़क और कभी-कभार चलती गाड़ियाँ। चायवाले को भी हिंदी समझ न आती थी, सिर्फ इशारों में ही बात किया उसने। एक व्यू पॉइंट भी बना हुआ था सड़क किनारे।
इन्ही शांत भरे वातावरण में चंद लम्हे बिताने के बाद इस तट को भी अलविदा कहने की बारी आ ही गयी और पुनः अगले गंतव्य नागरकोइल रेलवे स्टेशन की ओर प्रस्थान करना पड़ा।
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ऐसे अनेक तट हमारे वसई में है जो निर्जन भी है और सुंदर भी ...
ReplyDeleteहाँ निर्जन तट सुन्दरता के साथ साथ स्वच्छता की कसौटी पर भी खरे उतरते हैं.
Deleteवाह,यहाँ तो कोई है ही नहीं
ReplyDeleteहाँ कोई नही यहाँ।
DeleteGreat pics!
ReplyDeleteCheers, Archana - www.drishti.co
A lot of thanks Archanaji!
Deleteप्रजापति जी नयी जानकारी के लिए धन्यवाद ।आमलोग तो प्रचिलित स्थान घूमकर आ जाते है ।एक घुम्मकड़ ही इस तरह की जगह जाने की सोच
ReplyDeleteसकता है ।
आपने काफी धैर्यपूर्वक पढ़ा, बहुत बहुत शुक्रिया!
Deleteनीलापन आँखों को बहुत ही रिलैक्स करता है ऐसी जगह ! एक अनजान से खूबसूरत स्थान की यात्रा अविस्मरणीय हो जाती है ! आपने भी बहुत कुछ लिखा है आरडी साब ! एक एक करके पढता जाऊँगा
ReplyDeleteअनजान से जगहों में विचरण का मजा ही कुछ और है। दिलचस्पी लेने का बहुत बहुत शुक्रिया योगीजी।
DeleteBahut sunder jagah hai prajapati ji..thanks for sharing.
ReplyDeleteधन्यवाद
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