भारत के पूर्वी घाटों में पुरी अपने सुनहरे समुद्रतटों और मंदिरों के लिए सुविख्यात है, साथ ही साथ कोणार्क का विश्वविख्यात सूर्य मंदिर और भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर- ये दोनों मिलकर पुरी के साथ एक त्रिभुजाकार पर्यटन पथ का निर्माण करते हैं। पुरी का जगन्नाथ मंदिर तो काफी प्रसिद्ध है ही, साथ ही इससे सम्बंधित यहाँ और भी अनेक मंदिर हैं। पुरी के मुख्य सड़क में रथ मेले में लोगों की अपार भीड़ लगती है। इस त्रिकोणीय यात्रा के लिए
पूरी से ही रोजाना टूरिस्ट बसें चलती हैं, जो प्रातः सात बजे निकलकर सबसे पहले चन्द्रभागा, कोणार्क, धौलगिरी, उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं, भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर तथा अंत में नंदन कानन अभ्यारण्य से होते हुए शाम के सात बजे वापस लौटती हैं। सस्ती और आसान यात्रा के लिए ये बसें सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं। आज के इस पोस्ट में इसी एक दिवसीय यात्रा के बारे बताने जा रहा हूँ।
पूरी से ही रोजाना टूरिस्ट बसें चलती हैं, जो प्रातः सात बजे निकलकर सबसे पहले चन्द्रभागा, कोणार्क, धौलगिरी, उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं, भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर तथा अंत में नंदन कानन अभ्यारण्य से होते हुए शाम के सात बजे वापस लौटती हैं। सस्ती और आसान यात्रा के लिए ये बसें सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं। आज के इस पोस्ट में इसी एक दिवसीय यात्रा के बारे बताने जा रहा हूँ।
पुरी के समुद्रतट एक सुनहरी छटा प्रस्तुत करते हैं। जहाँ पश्चिमी घाट पर स्थित गोवा में मुझे लगा की वहां के तट चाँदी जैसे चमकते हैं, वहीं पुरी के तट थोड़ी लालिमा लिए हुए हैं। स्वर्गद्वार नामक जगह यहाँ का मुख्य इलाका है, जहाँ पर पर्यटक बंगाल की खाड़ी की लहरों का आनंद लेते हैं और सबसे ज्यादा होटल, बाज़ार, आदि भी वही हैं। लेकिन पूरी की यात्रा सिर्फ जगन्नाथ मंदिर देखने से ही पूरी नहीं होती, बल्कि कोणार्क और भुवनेश्वर की यात्रा भी स्वतः संलग्न हो जाती है। साथ ही पूरी से 55 किलोमीटर दूर चिल्का झील का सौंदर्य भी अद्भुत है, किन्तु उसके लिए अलग से एक दिन के समय की जरुरत पड़ती है।
त्रिकोणीय यात्रा पुरी से शुरू हुई 35 किमी दूर कोणार्क की ओर। यह सड़क था पुरी-कोणार्क मरीन ड्राइव। कोणार्क से थोड़ा पहले ही एक तट है चन्द्रभागा। किसी ज़माने में यह चन्द्रभागा नदी का मुहाना हुआ करता था लेकिन अभी यह नदी सुखी हुई अवस्था में ही है। जनवरी या दिसंबर में यहाँ रेत चित्रकला का मेला लगता है। यह तट मेरी नजर में पुरी के तट से भी कहीं अधिक शानदार है।
कुछ आगे बढ़ने पर विश्वविख्यात कोणार्क का सूर्य मंदिर, तेरहवी सदी में निर्मित यह मंदिर पत्थरों पर की गयी आश्चर्यजनक कलाकारी के लिए जाना जाता है। मंदिर का समूचा बनावट एक रथ जैसा है। सबसे रोचक तथ्य यह है की कभी इसके चबूतरे से समुद्र की लहरें टकराती थी लेकिन आज पृथ्वी की आतंरिक गतिविधियों के कारण कालांतर में तट 2-3 किमी दूर चला गया है। आज इसके ज्यादातर अंश टूट-फुट चुके हैं और वे हिस्से बगीचे में रखे हुए हैं। पत्थरों पर सजीव चित्रकारी की गयी है, जो जीवन के अनेक पहलुओं और उस समय के कला-संस्कृति को दर्शाती है। शायद इसीलिए ही-
महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा है-
"Here the language of human is surpassed by the language of stone."
''अर्थात ये वो जगह है जहाँ पत्थरों की भाषा मनुष्यों की भाषा के पार है। ''
कोणार्क सूर्य मंदिर देखने के बाद त्रिकोणीय यात्रा के अगले चरण में हमारा पड़ाव था धौलीगिरी या धवलगिरि में। भुबनेश्वर से मात्र आठ किमी पर दया नदी के तट पर स्थित इस पहाड़ी पर सम्राट अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध शांति स्तूप है। 260 ईसा पूर्व यही तट कलिंग के युद्ध, जो की मौर्य-अशोक के बीच लड़ा गया था, का गवाह बना था, जहाँ का पानी रक्तरंजित होकर लाल हो गया, जिसके बाद अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और उसने बौद्ध धर्म अपनाकर शांति स्तूप बनवाया।
अगला पड़ाव आया उदयगिरि और खण्डगिरि की गुफाओं में। भुबनेश्वर के नजदीक स्थित ये गुफाएं आंशिक रूप से प्राकृतिक एवं आंशिक रूप से मानव निर्मित हैं। उदयगिरि और खण्डगिरि दोनों ही आमने-सामने की पहाड़ियों पर ही स्थित हैं। कहा जाता है की इन गुफाओं में कभी जैन मुनियों का बसेरा हुआ करता था। गुफाओं को काफी बारीकी से तराशा गया है।
भुबनेश्वर का सबसे मुख्य मंदिर ग्यारहवीं सदी में निर्मित लिंगराज है, जहाँ फोटो खींचने की अनुमति नहीं होने के कारण मैं आपको दिखा नहीं पा रहा हूँ। सबसे अंत में हमारा पड़ाव आया लगभग 400 हेक्टेयर में फैले नंदन कानन वन्य जीव अभ्यारण्य में जो की अनेक प्रकार के बाग-बगीचों और नाना प्रकार के जीव जंतुओं से भरा पड़ा है। सफ़ेद बाघ और घड़ियाल मुख्य आकर्षण हैं। 1960 में निर्मित इस पार्क को 1999 में आये विनाशकारी तूफान के कारण सन 2000 में अनेक मरम्मतों से गुजरना पड़ा था।
नंदन-कानन में मात्र एक ही घंटे बिताने का मौका मिल पाया, क्योंकि यह अंतिम पड़ाव था, साथ ही शाम के पांच बज चुके थे। सारा अभ्यारण्य घूमने के लिए तो दिनभर भी कम ही है फिर भी हमने सफ़ेद बाघ, नीलगाय, हिरन, शेर, आदि देख ही लिए थे अब यह एकदिवसीय यात्रा यहीं समाप्त होती है।
एक नजर पूरी-कोणार्क-भुबनेश्वर यात्रा पर-
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बहुत अच्छा लिखा है और तस्वीरें भी काफी खूबसूरत हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद् सेहगल साहब।
Deleteवाह प्रजापति जी। सबसे पहले तो ब्लॉग का नया लुक बहुत पसंद आया। ऊपर से शानदार वृत्तान्त के साथ बढ़िया फ़ोटो देखने को मिली। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद् बीनुजी। वैसे इस नए लुक में और भी कुछ कुछ काम बाकि ही है अभी।
Deleteइतना कुछ एक ही पोस्ट में आनंद आ गया,पुरी कोणार्क और भुवनेशवर की यात्रा। आपसे और भी जानकारी लेनी है इस यात्रा की अगले साल जाने का विचार है
ReplyDeleteजी बिलकुल यथासंभव जानकारी दूँगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteशनिवार को ही पढ़ लिया था इस पोस्ट को अपने वाले एप्प्स से लेकिन वहां कमेंट नही हो पाता ! चित्र बहुत प्रभावी और सुन्दर हैं आरडी ! आपने बेहतरीन तरीके से अपनी यात्रा को लिखा है , वहां जाने वाले को आसान हो जाएगा !
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी आपका!
Deletebahut achhi aur sunder jankaridene ke liye aapka dil se dhanyabad,chunki hame november- me family ke sath aana hai,to aapke diye jankari ke liye dubara dhanyabad.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया RD जी
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी
DeletePuri Jane ka plan bans rahi Hun apki jankari see mujhe planing Karen me suvidha hui
ReplyDeleteशुक्रिया जी
Deleteim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
ReplyDeletedog does.
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