29 जुलाई 2016: मिशन लद्दाख का आठवां दिन। नुब्रा घाटी के रेगिस्तानी भूभाग में दो कूबड़ वाले ऊँटों को देखना आज की यात्रा का मुख्य मकसद था! पेंगोंग में एक रोमांचक वक़्त बिताने के बाद आज हमें नुब्रा घाटी के लिए निकलना था, लेकिन वहां ठहरने का कोई कार्यक्रम नहीं था, सिर्फ खारदुंगला होते हुए लेह वापस आ जाना था। पेंगोने से नुब्रा की दूरी भी करीब डेढ़ सौ किमी से अधिक की है, फिर नुब्रा से खारदुंगला करीब पचासी और खारदुंगला से लेह चालीस किमी, मतलब आज ढाई सौ किमी से अधिक की यात्रा करनी थी पहाड़ों पर!
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नुब्रा घाटी: दो कूबड़ वाले ऊंट (Double Humped Bactrian Camel in Nubra Valley) |
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- मिशन लद्दाख-7: मैग्नेटिक हिल का रहस्य और सिंधु-जांस्कर संगम (The Mysterious Magnetic Hill & Sindhu-Janskar Confluence)
- मिशन लद्दाख-8: रेंचो स्कूल (Mission Ladakh-8: Rancho School)
- मिशन लद्दाख-9: चांगला से पेंगोंग (Chang La to Pangong Tso)
- मिशन लद्दाख-10: पेंगोंग से नुब्रा और खारदुंगला (Pangong to Nubra and Khardungla)
पेंगोंग से नुब्रा तक का रास्ता काफी भयंकर है, ऐसा सुन रखा था। रास्ते भर सियाचिन ग्लेशियर के पास स्थित रिमो ग्लेशियर से निकलने वाली श्योक नदी ही बहती रहती है और कहीं-कहीं तो रास्ता है ही नहीं! एक स्थान पर आकर दूर-दूर तक सिर्फ पत्थर ही बिछा दिख पड़ा। कुछ लोग सड़क मरम्मत कर रहे थे, मरम्मत क्या बल्कि नयी सड़क ही बना रहे थे। उन्होंने बताया की नदी पर ही सड़क बनी हुई है, पर हर वर्ष बाढ़ आने पर सड़क बहकर नष्ट हो जाती है। इस प्रकार सड़क पर नदी और नदी पर सड़क का खेल अनवरत चलता रहता है।
श्योक नदी का मटमैले रंग का पानी, और ऊपर से तीव्र तूफानी चाल पूरे रास्ते भर हमारे रोंगटे खड़े करती रही। श्योक शब्द का मतलब भी शोक ही है। रास्ता तो अधिकतर स्थानों पर बेहद खराब है, और काफी संकरा भी। चार पहिये वाहनों को विशेष सावधानी बरतने की जरुरत पड़ती है, फिर भी स्थानीय टूरिस्ट गाड़ी वाले यहाँ भी सरपट गाडी दौड़ाने से बाज नहीं आते!
कारकोर्रम अभ्यारण्य के बाद का इलाका लगभग पूरी तरह से रेगिस्तानी ही है और हर दिशा में सिर्फ बालू ही बालू का साम्राज्य है। बालू के टीले भी एक से एक आकृतियाँ धारण किये हुए हैं। वनस्पति के नाम पर झाड़ियाँ ही हैं। घाटी में बहती नुब्रा नदी के भी अलग-अलग तरह के रूप दिखाई देते हैं, कहीं बालू के टापू तो कहीं बीचों-बीच हरे रंग के झुरमुट!
नुब्रा नदी सियाचिन ग्लेशियर से ही निकलती है और इसे सियाचिन नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह नुब्रा के मुख्य शहर दिस्कित के पास जाकर श्योक से मिल जाती है। यह संगम एक बहुत बड़ी घाटी का निर्माण कर कारकोर्रम श्रृंखला को लद्दाख श्रृंखला से अलग कर देती है। बाद में श्योक ही सिंधु की मुख्य सहायक नदी का रूप धारण कर लेती है। अगर आप नुब्रा-श्योक के संगम के बाद श्योक के साथ साथ ही आगे उत्तर-पूर्व की ओर चलते जाएँ तो तुर्तुक तक पहुंच जायेंगे, और यह भी काफी खूबसूरत जगह है, पर ये हमारी सूची में नहीं था।
इन्हीं रास्तों पर चलते-चलते नुब्रा घाटी के मुख्य शहर दिस्कित होते हुए दिन के ठीक साढ़े बारह बजे के करीब हम नुब्रा घाटी में थे। दिस्कित के पास एक गाव है हुन्डर जहाँ बहुत सारे होटल उपलब्ध हैं।अगर सच कहूँ तो मैंने इन्टरनेट पर इस घाटी के जितने फोटो देखे देखे थे, असल में उतने सुन्दर तो नहीं लगे पर अलग जरूर थे, दुर्गम रास्तों से होते हुए लोग यहाँ आते ही हैं। घाटी में भी काफी संख्या में लोग आये हुए थे, छोटे-बड़े रेस्तरां, होटल, दुकान आदि भी थे। बीच में बहती हुई नदी की एक धारा भी है जिसपर एक लकड़ी का एक छोटा सा पुलिया बना हुआ है और लोग बैठकर अपने पैर लटकाते हुए पानी में डुबोकर ठन्डक का मजा लेते हैं। नदी, फिर रेट के टीले, कांटेदार जंगल और भूरे पहाड़ो के बीच से दिखता नीला आसमान- ये सभी नुब्रा घाटी के सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं।
नुब्रा घाटी के सबसे मुख्य आकर्षणों में से एक है- वहां पाए जाने वाले दो कूबड़ वाले ऊंट! जी हाँ, पुराने समय में जब सिल्क रूट हुए करता था तब मध्य एशिया, मंगोलिया आदि स्थानों से ऐसे ऊंट यहाँ लाये गए थे और आज भी देखे जा सकते हैं। पूरे भारत में दो कूबड़ वाले ऊंट (Double Humped Bactrian Camel) सिर्फ यहीं देखने को मिलेंगे। इन ऊँटों को देखने के लिए हम पहले से ही लालायित थे, नदी पार कर देखा की ऊंट की सवारी करवाने वाले लोग बैठे हुए हैं, ऊंट की पीठ पर रखे जाने वाले लाल-पीले गद्दी भी जमीन पर पड़े हुए हैं, पर ऊंट गायब हैं! पता चला की दोपहर में उनके चरने का समय होता है और वे जंगल की ओर गए हैं।
दिन के समय यहाँ गर्मी खूब लगती है, मुझे तो सारे गरम कपडे उतारने पड़ गये। दूसरी ओर रातें बिल्कुल इसके उलट होती हैं! डेढ़-दो घंटे का समय नुब्रा में बिताने के बाद अब वापस लेह की तरफ निकलना था, और रास्ते में ही खारदुंगला भी आने वाला था। इस प्रकार हमारा दो दिन का यात्रा क्रम लेह-पेंगोंग-नुब्रा-खारदुंगला-लेह रहा। इसका उल्टा भी किया जा सकता हैं, पर पेंगोंग में रात बितानी थी, नुब्रा में नहीं, इसलिए हमने ऐसा क्रम चुना।
नुब्रा से लेह की डगर लेह-पेंगोंग और पेंगोंग-नुब्रा की तुलना में बहुत आसान रही। सिर्फ शुरूआती कुछ रास्तों को छोड़ बाकि सभी सड़के ठीक-ठाक थी। बड़ी तेजी से बढ़ रहे थे। दुनिया के सबसे ऊँचे गाडी चलाने लायक रोड कहे जाने वाले खारदुंगला की ऊंचाई अठारह हजार फीट से भी अधिक है, लेकिन इससे भी अधिक ऊँचे रोड जैसे माना पास, मार्सिमिक ला आदि भारत में ही है, इसीलिए अनेक लोग इसे दुनिया का सबसे ऊँचा रोड मानते ही नही। अगर ऐसा है तो शीघ्र ही इसे यह दावा त्याग देना चाहिए।
सड़कों के माइलस्टोन पर मेरी पैनी नजर थी और मैं लगातार खारदुंगला की दूरी देखता जा रहा था। अचानक लिखा देखा की खारदुंग की दूरी सिर्फ एक किमी रह गयी, लेकिन दर्रे में चढ़ने जैसा महसूस नही हो रहा, बाद में समझ आया की खारदुंग और खारदुंगला अलग-अलग है। खारदुंग सिर्फ एक गाँव है जबकि खारदुंगला एक पास। खारदुंग से कोई तीस किमी बाद ही खारदुंगला है।
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हरे दलदली मैदान |
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श्योक नदी: सड़क पर नदी या नदी पर सड़क? |
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रेगिस्तानी इलाके की शुरुआत |
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यही है नुब्रा घाटी ! |
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बालू के टीले (Sand Dunes) |
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नदी की एक धारा |
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दो कूबड़ वाले ऊंट (Double Humped Camel) |
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खारदुंग ला की सड़कें |
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बहुत बढ़िया और विस्तार से लिखा है । फोटो भी काफी अच्छे आएं हैं ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया नरेश जी!
Deleteबहुत बढिया लिखा है भाई जी
ReplyDeleteधन्यवाद अनिलजी
Deleteनुब्रा घाटी का इतना सचित्र वर्णन मैंने आज पहली बार पढ़ा है ।बहुत ही बढियां है लेकिन खतरनाक भी , रेगिस्थान में जनरली रात को ठण्ड ही होती है ,और ऊंट भी डबल स्टोरी पहली बार देखे ☺
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया बुआजी !
Deleteनुब्रा घाटी को कम समय दे पाये। मुझे लगता है, एक रात आप नुब्रा को देते तो इसकी भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति से भलीभांति रूबरू हो सकते थे। तीरंदाजी यहाँ का मुख्य खेल है।
ReplyDeleteवैसे अच्छा लिखा है आपने।
जी, नुब्रा घाटी को थोडा और समय देना चाहिए था, पर वक़्त की पाबन्दी भी थी. नुब्रा की संस्कृति देख पाने का मौका ठीक से नहीं मिल पाया. भविष्य में कभी दुबारा जाना हो तो जरूर कोशिश करूँगा. धन्यवाद कोठारी साहब!
Deleteचित्र तो अद्भूत दृश्यो को नजरो के सामने परोस रहे है।
ReplyDeleteशुक्रिया कपिल भाई!
DeleteYou have written such a wonderful post
ReplyDeleteThanks!
ReplyDeleteबहुत ही शानदार जगह और शानदार यात्रा वर्णन किया है आरडी भाई ! काराकोरम वाइल्डलाइफ सेंचुरी के लिए कोई परमिट लगता है क्या ?
ReplyDeleteयोगीजी, किसी परमिट की आवश्यकता नही है। धन्यवाद।
Deleteयोगीजी, किसी परमिट की आवश्यकता नही है। धन्यवाद।
Deleteawesame post and photography
ReplyDeletethanks
DeleteRD bhai aapki yatra to puri hui, jane ka vivran to apane likha aane ki vivran kuch to likhte chahe ek hi post me sahi par kuch to likhne , sach me maza aa gaya apki ye 10 post padhkar
ReplyDeleteआखिरी पोस्ट में लेह से मनाली का वही रास्ता अपनाया तो लिखा नहीं, पर अब जरुर लिख डालूँगा, पहली घुमक्कड़ी मिलन उसी में हुई थी, उसी के बारे लिखना है.
DeleteBahut badiya post hai
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