मिशन लद्दाख-7: मैग्नेटिक हिल का रहस्य और सिंधु-जांस्कर संगम (The Mysterious Magnetic Hill & Sindhu-Janskar Confluence)
27 जुलाई 2016: मिशन लद्दाख का छठा दिन। आपलोगों ने मैग्नेटिक हिल के बारे अवश्य ही सुना होगा या टीवी चैनलों और यूट्यूब पर इसके वीडियो जरूर देखें होंगे। ढलान पर चीजों का लुढ़कना तो आम बात है, लेकिन यहाँ स्थिति ठीक इसके विपरीत है। उन विडियो में अपने देखा होगा की किस तरह गाड़ियां एक पहाड़ के चढ़ान पर खुद-ब-खुद चढ़ती जाती हैं। लेकिन क्या ये वास्तव में सच है? क्या वहां सच में कोई चुम्बकीय शक्ति मौजूद है? आखिर इस मैग्नेटिक हिल का रहस्य क्या है?
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मैग्नेटिक हिल: एक राज |
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गुरूद्वारे से कुछ किलोमीटर आगे ही वो रहस्यमयी मैग्नेटिक हिल है, जो हर किसी के कौतुहल का विषय है। रोड के बांयी और इस पीले रंग के बोर्ड पर अंग्रेजी में लिखा है- एक ऐसी घटना जो गुरुत्वाकर्षण को मात दे! रोड पर बनाये गए बॉक्स पर अपनी गाडी रखिये और जादू अनुभव कीजिये! सड़क पर एक बॉक्स बना हुआ है जिसके अंदर लोग अपनी कारों और बाइकों को न्यूट्रल पर रखकर प्रयोग कर रहे थे। बॉक्स के एक ओर ढलान था, जबकि दूसरी ओर चढ़ान। और इस जादुई घटना के मुताबिक गाड़ियों को चढ़ान पर चढ़ना था।
एक बन्दा आया, उसने कार बॉक्स के अंदर पार्क की, लेकिन नतीजा कुछ न निकला, कार चढ़ान पर जाने के बजाय स्वाभाविक रूप से ढलान पर ही लुढ़कने लगी। इस तरह बहुत सारे लोगों ने इस पर प्रयोग किये। कुछ ने बाइक पर प्रयोग किया। हमलोगों ने भी बाइक न्यूट्रल पर रखी, पर नतीजा निराशाजनक ही रहा। हो सकता है की हमसे ही कोई चूक हो रही हो! जो भी हो, मैग्नेटिक हिल के करिश्मे को हम तो अनुभव न कर पाए, लेकिन वहीँ तमाम टीवी चैनलों ने इसके बारे गाड़ियों को उल्टी दिशा में लुढकते हुए ही दिखाया है, अलग-अलग विश्लेषण भी किया है, वैज्ञानिक या अवैज्ञानिक तरीके से। सबसे सटीक विशेलषण जो मुझे अब तक लगा है, वो है- नजरों का धोखा! शायद यहाँ चढ़ान के बजाय असल में ढलान ही हो, फिर भी हमें चढ़ान ही दिखता हो। ऐसी एक रहस्यमयी जगह गुजरात के किसी गाँव में भी है।
अब यहाँ से आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर निम्मू नामक स्थान पर लेह के आस-पास के अंतिम नज़ारे के रूप में था- सिंधु-जांस्कर का संगम। पहाड़ों पर आराम से बाइक दौड़ाते हुए दूर कहीं नीचे दो मटमैले रंग की जलधाराएं आपस में मिलती हुई दिख पड़ी! देखकर ही समझ आ गया की हो न हो, यही वो संगम है। अब हम इस पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, और संगम करीब आ रहा था। कौतुहल बढ़ती जा रही थी। वो दो पतली जलधाराएं अब काफी चौड़ी नजर आने लगी। तो अब मेरे बांयी ओर थी ज़ांस्कर और दायीं ओर थी सिंधु। जांसकर तो वही नदी है जो सर्दियों में जम जाती है और जनवरी के महीने में लोग ऊपर चादर ट्रैक करते हैं, जबकि सिन्धु नदी पूरी तरह से नहीं जमती, बाद में यही सिन्धु पाकिस्तान में भी बहती है।
संगम पर पानी का प्रवाह काफी डरावना था, एक चबूतरा बना हुआ था, जहाँ खड़े हो हम फोटोग्राफी में भीड़ गए। कुछ दूर आगे जाकर मैंने पानी को छूकर देखा, काफी ठंडा था पानी, अब जब छू लिया तो चखने की भी इच्छा हुई, और मुझसे रहा नहीं गया। पानी का स्वाद तो मुझे सामान्य ही लगा, लेकिन शायद इन भूरे चट्टानों के संपर्क में पानी का रंग गहरा हो गया होगा।
शाम काफी ढल चुकी थी, और अँधेरा शुरू हो चूका था। वैसे यहाँ बोटिंग की भी सुविधा थी, लेकिन वक़्त के अभाव में यह हो नहीं पाया। लेह के आस-पास के सारे मुख्य स्थानों का हम दीदार कर चुके और अब अगले दिन से पांगोंग की यात्रा करनी थी, एक बार फिर से लेह-मनाली हाईवे जैसी ही पथरीली मुश्किल डगर पर।
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गुरुद्वारा पाथर साहिब |
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मैग्नेटिक हिल पर |
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इसी जगह गाड़ियां रख लोग करते हैं प्रयोग |
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इसी चबूतरे से मैंने पानी को छुआ! |
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संगम पर बोटिंग करते लोग |

अगली पोस्ट में चलेंगे थ्री इडियट्स स्कूल होते हुए पेंगोंग की ओर !
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अच्छी जानकारी cheer
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद पाब्ला जी
Deleteएक रोमांचक यात्रा में साथ होने जैसा महसूस हो रहा है
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल भाई
Deleteयात्रा बहुत बढिया चल रही है पर गैप ज्यादा हो गया लिखने मे।
ReplyDeleteजी, इस बार गैप तो हुआ है
Deleteगुरूद्वारे या मंदिर के होने के ऐसी जगह पर अपने फायदे हैं आरडी भाई ! सिंधु और जांस्कर का अद्भुत मिलन ! जय हो , बढ़िया यात्रा चल रही है ! मैग्नेटिक हिल का प्रयोग तो हर कोई करता होगा आपकी तरह , कुछ का सफल हो जाता होगा , कुछ का असफल ! चलते रहिये , पंगोंग में साथ चलूंगा आपके
ReplyDeleteजरूर योगी जी, बहुत बहुत शुक्रिया !
DeleteYou not satisfied with Magnetic Hill's. But I saw many people sure about it's real.
ReplyDeleteYes, many people say that it is real. May be, somewhat we were wrong during the experiment!
Deleteगुरुद्वारे गये नहीं पर फ़ोटू हाजिर है मुझे लद्धाख में यही गुरद्वारे के दर्शन करने है,अगर मै होती तो कुछ समय गुरद्वारे में गुजरती। कभी किसी गुरद्वारे में जाकर शबद सुनकर देखना।खेर, अब कहाँ जाते हो ?चलते है...
ReplyDeleteकिसी गुरूद्वारे के अन्दर कैसा होता है आज तक तो गया नहीं...अबकी बार मौका मिले तो जरुर देख लूँगा....
Deletewah thane pani me boating,
ReplyDeleteजी
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