मिशन लद्दाख-6: शे गुम्पा, लेह महल, शांति स्तूप और हॉल ऑफ़ फेम (Mission Ladakh: Shey Monastry, Leh Palace, Shanti Stupa and Hall of Fame)
27 जुलाई 2016: मिशन लद्दाख का छठा दिन। दोस्तों, पिछले महीनों इधर-उधर की कुछ छोटी-बड़ी यात्राओं और त्योहारों के कारण लगभग दो महीने बाद अपने ब्लॉग पर वापस आया हूँ, लद्दाख यात्रा की श्रृंखला भी इसी बीच अधूरी रह गयी। अब तक मनाली से लेह तक की बाइक यात्रा का वृत्तांत मैं पेश कर चुका था। लेह शहर की पहली झलक तो हमें रात की मिली थी, थकान भी थी, इसीलिए अगले दिन सिर्फ लेह शहर का ही भ्रमण करने का कार्यक्रम था, बाकी दूर के पेंगोंग, नुब्रा घाटी आदि के दर्शन बाद में करने थे।
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- मिशन लद्दाख-6: शे गुम्पा, लेह महल, शांति स्तूप और हॉल ऑफ़ फेम (Mission Ladakh: Leh Palace and Hall of Fame)
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लेह-लद्दाख के सम्बन्ध में एक और महत्वपूर्ण बात बताता हूँ- यहाँ पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य में ही रोमिंग में प्रीपेड सिम कार्ड काम नहीं करते, यानि आपके पास अगर पोस्टपेड सिम है तो ही आपके मोबाइल पर नेटवर्क दिखेगा अन्यथा नहीं। मेरे पास तो प्रीपेड ही था, लेकिन कुछ साथियों के पास पोस्टपेड भी था जिससे काम चल जाता था। लेह जैसे शहरी क्षेत्रों को छोड़ बाकि जगह पोस्टपेड में भी सिर्फ बीएसएनएल का नेटवर्क ही मजबूत है, बाकि नेटवर्क की स्थिति कमजोर ही है।
एक बौद्ध बहुल क्षेत्र होने के कारण लेह में बौद्ध मठों या मोनास्ट्री की भरमार है जिनमें थिकसे मोनास्ट्री सबसे बड़ा है और मनाली रोड ही स्थित है। इसके अलावा शांति स्तूप व् ऐतिहासिक लेह पैलेस काफी महत्वपूर्ण स्मारक हैं। लेह-श्रीनगर मार्ग पर स्थित मैग्नेटिक हिल भी काफी समय से लोगों के कौतुहल का विषय रहा है, पर मैंने क्या महसूस किया आगे बताऊंगा। इन सबके अलावा अगर सबसे खूबसूरत जगह लेह के आस पास कोई है तो वो है सिंधु-जांस्कर संगम। भारत के अधिकांश हिल स्टेशनों की भांति लेह में भी एक मॉल रोड है जिसकी सुन्दरता शाम के अँधेरे में ही महसूस की जा सकती है। वैसे खारदुंगला भी लेह के आस-पास के नजारों में अक्सर शामिल किया जाता है, नुब्रा घाटी जाते वक़्त भी रास्ते में खारदुंगला देख सकते हैं। भारतीय सेना के एक बड़े संग्रहालय जिसे "हॉल ऑफ़ फेम" कहा जाता है, शहर के बीचो-बीच ही स्थित है, जहाँ सेना के शौर्य गाथा, भारत-तिब्बत के एतिहासिक सम्बन्ध, सरहद आदि के बारे काफी बढ़िया जानकारी मिल जाएगी।
जैसा की मैं पहले बता चुका हूँ की थिकसे सबसे बड़ा मोनास्ट्री है, पर इसके अलावा और भी बहुत सारे मोनास्ट्री यहाँ हैं जिनमें से एक है- शे मोनास्ट्री जो शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर मनाली हाइवे ही स्थित है। बौद्ध मोनास्ट्री तो मैं पहले भी सिक्किम या दार्जिलिंग में देख ही चुका हूँ, इसलिए मेरे लिए ये नए नहीं थे। सुबह नौ बजे के करीब हमारी बाइक शे मोनास्ट्री या गुम्पा की और बढ़ चली।
चारो ओर नंगे-भूरे से पहाड़ और सड़कें एकदम साफ़-सुथरी काली सी। अब तक जितने भी शहर या हिल स्टेशन देखे थे मैंने- उन सबसे यहाँ का दृश्य काफी अलग था। लद्दाख के स्थानीय निवासियों के चहरे नयन-नक्श से ही आराम से पहचाने जा सकते थे। पर हां, सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां तो जानी-पहचानी ही थीं। नामग्याल शासकों द्वारा सत्रवीं सदी में बना यह एक ऐतिहासिक स्थल है जहाँ बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्ति रखी हुई है। मंदिर की चोटी से लेह और आस-पास का नजारा काफी बेहतरीन है। वैसे लद्दाख में वनस्पति जहाँ नाम-मात्र की ही है, यहाँ से काफी मात्रा में दिखाई देती है। और माचिस के डब्बे की भांति चौकोर घरों का क्या कहना ! दिलचस्प बात यह है की लद्दाख में ऐसे घर और एतिहासिक स्थल भी मिटटी के बने होते हैं, और बारिश के अभाव में सदियों तक सही-सलामत अवस्था में ही रहते हैं।
शे-गुम्पा के आगे थिकसे नामक एक और बड़ा गुम्पा भी है, पर एक गुम्पा देख लेने के बाद किसी को थिकसे जाने की इच्छा न हुई और हम वापस लेह की ओर ही मुड़कर एतिहासिक लेह-पैलेस की तरफ बढ़ चले।
लेह पैलेस लेह ही नहीं, बल्कि पुरे लद्दाख का ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्मारक है। नामग्याल शासकों द्वारा इसका निर्माण सोलहवीं सदी में प्रारम्भ हुआ था, जो एक ही पहाड़ी पर नौ मंजिले ईमारत के रूप में आज भी दृढ़ता से खड़ा है। आश्चर्य इस बात की है कि यह सिर्फ लकड़ी और मिटटी से बना है, फिर भी चार-पांच सौ वर्षों से सुरक्षित है। भवन में प्रवेश करते ही आपको अनेक कमरे मिलेंगे जिनकी छतें, दरवाजे, खिड़कियां लकड़ियों से बने है, वैसे मरम्मत का काम हमेशा चलते ही रहता है। अंदर एक आर्ट गैलरी भी है जिसमें तस्वीरें टंगी है, और इसका ऐतिहासिक वर्णन भी किया गया है। भवन के ऊपर चढ़कर लेह शहर और जांस्कर श्रृंखला के मन मोह लेने वाले नज़ारे दिखने लगते हैं, साथ ही दूर से ही शांति स्तूप भी दिखाई देता है।
लेह पैलेस से मात्र दो-तीन किमी दूर ही शांति स्तूप है, मैंने ऐसे और भी स्तूप देखें हैं जिनमें एक बिहार के राजगीर में भी है। यह स्तूप अधिक प्राचीन तो नहीं है, दलाई लामा ने अस्सी के दशक में इसकी नींव डाली थी। जापान और कुछ अन्य देशों के आर्थिक सहयोग से इसे बनवाया गया था, साथ ही लद्दाख के निवासियों ने इसके निर्माण में मुफ्त का श्रमदान भी किया था।
अब हम श्रीनगर-लेह हाइवे की और बढ़ते हुए भारतीय सेना के एक संग्रहालय पहुँचते हैं जिसे हॉल ऑफ़ फेम का नाम दिया गया है। यहाँ प्रवेश के लिए टिकट लगता है और कैमरे का भी अलग। मैंने तो कैमरे का टिकट ही नहीं लिया इसीलिए इसके अंदर का फोटो नहीं ले पाया, पर मेरे साथियों ने लिया था, लेकिन चार महीने बाद तक भी उनसे वो फोटो मैंने नही माँगा है। इस हॉल के अंदर इतनी सारी सामग्रियां मौजूद हैं की सबका वर्णन इस पोस्ट में कर पाना संभव नहीं है। संक्षेप में कह दूं की यहाँ लद्दाख-तिब्बत का इतिहास, भारतीय सेना की उपलब्धियां, पडोसी देशों के साथ सीमा संबंधों में उतार -चढाव की झलकियां आदि को बहुत ही कलात्मक ढंग से दर्शाया गया है। अंदर कुछ चीजें ऑडियो-विडियो तथा मॉडल के रूप में भी दिखाए गए हैं। वैसे इस संग्रहालय के हर प्रस्तुति को समझने में दिन- भर का समय भी कम ही होगा।
रास्ते किनारे एक बौद्ध मंदिर
शे गुम्पा- जरा करीब से
लेह महल का ढांचा
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कुछ यूँ दीखता है लेह पैलेस से लेह |
मरम्मत के लिए रखी लकड़ियां
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लेह पैलेस से दिखता शांति स्तूप |
शांति स्तूप
अगले पोस्ट में मैं आपको बहुचर्चित मैग्नेटिक हिल का अनुभव बताऊंगा और ले जाऊंगा सिंधु-जांस्कर संगम की ओर।
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जानकारियों से परिपूर्ण पोस्ट...
ReplyDeleteहमारा भी सपना है,कभी इन भूरे ,वीरान पहाड़ों की और जाने का...
धन्यवाद सुमित जी.
Deleteअच्छी जानकारी सहित पोस्ट । एक अनछुई दुनिया तस्वीर देखकर ही अद्भूत लगता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल जी, बिल्कुल वो दुनिया ही अलग सी है!
Deleteलेह में खूब सारे पेड़ दिख रहे हैं ! शांति स्तूप हमेशा अच्छा लगता है ! सीरीज पढ़ने में ये फायदा रहता है कि हमें लगभग हर बात पता चलती रहती है ! अगर भविष्य में कभी कोई प्रोग्राम बना लेह -लद्दाख जाने आ तो आपका ब्लॉग बहुत आम आएगा !! लिखते जाइये , मजा आ रहा है !!
ReplyDeleteआभार आपका योगीजी !
Deleteजोरदार सफर जारी है । मैंने भी पटना शहर के पास राजगीर में ऐसा शांति स्तूप देखा है। लद्धाख एक हिल एरिया है ये पहली बार मालूम पड़ा।
ReplyDeleteजी हाँ, राजगीर में भी बिलकुल ऐसा ही शांति स्तूप है! लद्दाख एक हिल एरिया के साथ साथ एक ठंडा बंजर रेगिस्तान भी है!
Deletewakai laddhakh bahut sundar hai,
ReplyDeleteधन्यवाद्
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