थाईलैंड यात्रा के तीसरे दिन हम वापस बस पकड़ पटाया से बैंकाक आ गए। बैंकाक में हमें सिर्फ दो दिनों के लिए ही रुकना था लेकिन इतने बड़े शहर के लिए सिर्फ 2 दिन बिल्कुल नाकाफी थे। फिर भी हमारी कोशिश रही कि कम से कम मुख्य स्मारक देख लिए जाएं। बैंकाक सफारी वर्ल्ड जो दुनिया के सबसे बड़े चिड़ियाघरों में गिना जाता है, उसके लिए एक पूरा दिन चाहिए था, वहां जाना हमारा तय भी था, इस कारण बैंकाक के बाकी स्थलों को देखने के लिये हमारे पास सिर्फ 1 दिन ही था।
तो सुबह 10-11 बजे के करीब हम बैंकाक के सियाम इलाके के होटल ए वन आ पहुँचे जिसकी ऑनलाइन बुकिंग हमने मेक माय ट्रिप से करीब अठारह सौ रु के आस पास की थी, फ्री ब्रेकफास्ट के साथ। वैसे अगर आप अकेले हों तो होस्टल भी ले सकते हैं जिसमें फ्री ब्रेकफास्ट भी मिल जाता है, चार-पांच सौ रु में एक बेड का किराया होता है। हम तीन थे, इस कारण हमने होटल ही लेना ठीक समझा था।
बैंकाक की अनजान गलियों में हम पैदल निकल पड़े। यहां भाषा की दिक्कत थी क्योंकि कम लोग ही अंग्रेजी समझ पाते हैं थाईलैंड में, और तो और उच्चारण भी अजीब सा लगता है उनका। जैसे 'स्ट्रीट' को वे 'स्तरित' कहते हैं, दिमाग पर जोर लगाने से उनकी अंग्रेजी कुछ समझ आती है। परंतु वे पर्यटकों के प्रति काफी सकारात्मक और काफी दोस्ताना व्यवहार करते हैं।
बैंकाक में हमारे शहर का एक पड़ोसी परिवार रहता था, जहां शाम को हमें जाना था। उनसे हमने बैंकाक घूमने के बारे राय मांगीं। कहा कि पहले वाट फो जाओ, फिर नदी के उस पार वाट अरुण जाना। फ्लोटिंग मार्केट काफी दूर था, एक टैक्सी वाले ने उसके लिए 3000रु मांग की, बसों का कोई आईडिया न था, रहने दिया हमने।
थोड़ी देर में एक बुजुर्ग टैक्सी वाला होटल से वाट फो डेढ़ सौ भाट यानी करीब तीन सौ रु में जाने को तैयार हो गया। साथ ही यह भी बात हो गयी कि वाट फो के बाद वाट अरुण देखने तक वो हमारा वहीं इंतज़ार करेगा, फिर शाम को हमारे उस पड़ोसी परिवार के पते पर भी ले जाएगा जहां हमें जाना था। होटल से वाट फो एवम वाट अरुण की दूरी तो सिर्फ 8-10 किमी ही थी, लेकिन जहां हमें आखिर में जाना था, वाट फो से करीब पंद्रह- बीस किमी दूर था। इतनी लंबी दूरी और चार-पांच घंटे के लिए सिर्फ तीन सौ रु का किराया काफी अचंभित करने वाला था, टैक्सी वाले कि मेहरबानी थी, वरना दूसरे टैक्सी वाले इसके लिये पाँच-सात सौ रु से कम न लेते बल्कि अधिक ही लेते।
गुलाबी रंग के टैक्सी में सवार हम निकल पड़े अब वाट फो की ओर। बैंकाक की सड़कें काफी सपाट, ट्रैफिक की चाल भी हाई स्पीड ही थी, लेकिन ट्रैफिक के सिग्नल काफी जल्दी-जल्दी होने के कारण औसत गति धीमी पड़ जाती। थाईलैंड की सड़कों पर दो-तीन बातें जो प्रभावित करने वाली हैं- सड़कों की साफ सफाई, चिकनी सपाट सड़कें और एकदम बिना हॉर्न के शांत चलने वाली गाड़ियां।
बातों ही बातों में हम वाट फ़ो मंदिर के द्वार पर आ गए। प्रवेश शुल्क सौ भाट यानि करीब दो सौ रु थी। अंदर प्रवेश करते ही हम सोलहवीं सदी के थाईलैंड में प्रवेश कर गए। यह बुद्ध मंदिर करीब चार सौ साल पुरानी है परन्तु हरदम चमचमाती रहती है। बहुत बड़ा सा कैंपस है इसका और मुख्य मंदिर के अलावा छोटी-छोटी सैकड़ों मंदिरें हैं यहाँ। दीवारों पर नक्काशियां अद्भुत हैं, थाईलैंड के मंदिरों में एक बात जो सही जगह विद्यमान है वो है-मंदिरों की नुकीली संरचना। वाट फ़ो का सबसे बड़ा आकर्षण है- लेते हुए बुद्ध की प्रतिमा (Reclining Buddha) जो 46 मीटर लम्बी है, एक ही बार में फोटो ले पाना काफी मुश्किल था। यहाँ परंपरागत थाई मसाज की भी शिक्षा दी जाती है।
वाट फ़ो के बगल से चाओ फराया नदी बहती है, इसे थाईलैंड की गंगा भी कह सकते हैं। नदी के उस पार वाट अरुण मंदिर है जिसे टेम्पल ऑफ़ डॉन भी कहा जाता है। नदी पार करने को एक जेट्टी बनी है, जहाँ आठ भाट का किराया देकर उस पार जाया जा सकता है। काफी चौड़ी और बड़ी नदी है चाओ फराया।
नदी पार करने में दस-पंद्रह मिनटों का समय ही लगा, वाट अरुण के फोटो लेते-लेते न जाने कब हम इसके बिलकुल समीप आ गए। यहाँ कोई प्रवेश शुल्क न था। अँधेरा होने से ठीक पहले हम पहुंचे, बत्तियाँ जब तक न जलीं, तब तक मंदिर सफ़ेद दीखता रहा, परन्तु बत्तियों के जलते ही मंदिर का रंग बदल कर मानो पीला हो गया।
आप थाईलैंड के मुख्य स्मारक में या कहीं भी थाईलैंड के फोटो में अवश्य इस मंदिर का फोटो देख सकते हैं। थाईलैंड में वाट का मतलब होता है मंदिर और अरुण तो संस्कृत शब्द है ही, यानि यह एक सूर्य मंदिर है। भारतीय संस्कृति से थाईलैंड के इतिहास का भी कोई न कोई सम्बन्ध रहा होगा जिस कारण ऐसी समानता है।
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