धरती के गर्भ में छिपा लोहे का अकूत भंडार और धरातल पर छाई सघन वनों की हरियाली- यह है झारखण्ड की एक ऐसी भूमि जो कुदरती खजाने और सौंदर्य दोनों का एक अनूठा संगम है। झारखण्ड का एक सुदूर इलाका जिसकी सीमाएं एक ओर से उड़ीसा को भी छूती हैं, प्रकृति प्रेमियों के लिए अवश्य
बाढ़- यह एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो समय समय पर अपनी विध्वंशकारी शक्तियों से हमारे जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करते आई है। भारत के मैदानी हिस्से खासकर गंगा किनारे बसे गाँव-शहर तो हमेशा से बाढ़ की त्रासदी झेलते आये हैं। बिहार-बंगाल में कोशी और दामोदर नदियों का भयावह तांडव किसी से छुपा नहीं है, इसलिए
खनिज संसाधनों के मामले में सबसे अव्वल और बिरसा की धरती झारखण्ड का भला विश्वयुद्ध के साथ क्या सम्बन्ध हो सकता है? हम सब यह जानते हैं की द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत भी युद्ध से अछूता नहीं था और पूर्वी भारत के अनेक हिस्सों में इसके सबूत आज भी मौजूद हैं। Top 4 waterfalls of
झारखण्ड के रमणीय स्थलों की श्रृंखला में पिछली चर्चा हिरनी जलप्रपात की हुई थी।झारखण्ड का सौंदर्य चर्चा करने पर जलप्रपातों की चर्चा स्वतः हो जाती है और जलप्रपातों की चर्चा करने पर राँची के आस पास के इलाकों का चर्चा करना अनिवार्य हो जाता है। इसी सन्दर्भ में आज राँची से लगभग चालीस किलोमीटर दक्षिण
पिछले कुछ पोस्टों में मैंने झारखण्ड का जिक्र किया, जिनमें मैंने दलमा और पतरातू घाटी का वर्णन किया था। खनिज संसाधनों एवं प्राकृतिक नजारों से समृद्ध होने के बावजूद भी पर्यटन की दृष्टि से देशवासी इस राज्य के बारे बहुत कम ही जानते हैं, इसलिए इसके बारे कुछ न कुछ लिखते ही रहने की चेष्टा
दक्षिणी झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक छोटा सा शहर है चाईबासा। चारो ओर से हरे-भरे पेड़-पौधों से घिरा हुआ सारंडा जंगल के समीप यह एक आदिवासी बहुल इलाका है जो अपने सबसे नजदीकी बड़े शहर जमशेदपुर से 60 किलोमीटर और राज्य की राजधानी रांची से 145 किलोमीटर की दुरी पर है। विरल जनसंख्या